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Tuesday, January 12, 2010

90 s ki maasumiat

आखों पे रखी
नन्ही उँगलियों
कि खिड़की से
झाँकने मे बड़ा मज़ा आता था
जब टी.व् पे अचानक निरोध का अड्ड आ जाता था
सब धयान बटा कर
करने लग जाते दुनियादारी कि बातें
किसी को फ़िक्र हो जाती " गुप्ता जी के कुत्ते कि"
तो किसी को कुछ काम याद आ जाता था
जब प्यार से इकरार का सफ़र पूरा होता {गाना : प्यार हुआ इकरार हुआ.......}
तब माथे के बल को मिस्टर इंडिया का गेजेट मिल जाता था
फिर सब काम छोड़ कर टीवी देखने लग जाते.
मासुमिअत् से भरा था 90

90!! जब हम सच्चे बछे थे
जब दूरियाँ वाकई मे दूर हुआ करती थीं
जब स्कूल कि लाइब्रेरी के कोने मे
चुप कर फैमिना पड़ी जाती थी
जब किसी खुबसूरत से
" हेल्लो" करने कि बड़ी शरतें रख्खी जाती थीं
दाने, पिम्पल "इन" थे तब
जब हर रोज़ प्यार हो जाता था
और किसी और से इकरार हो जाता था
मासुमिअत् से भरा 9०
जब हम हर रोज़
राष्ट्रीय गान गाते थे
शामे सारी खेल मे बिताते थे
जब हम हिन्दू मुसलमा नहीं थे
जब हम A,B, C थे { sections}
जब हम हाउस थे.
जब हम रोल नंबर थे
मासुमिअत् से भरा था 90
आज ! आईने के सामने
फिर कोशिश कि
आँख पे हाथ रख
उँगलियों के बीच से झाँकने कि
देखा, तो सामने एक शातिर शख्स झाँक रहा था
दोनों साथ बोल पड़े..
" वाकई मे!! मासुमिअत् से भरा था 90 "