ज़हन से दिल तक का सफर कुछ लंबा हो गया
दूर से सब मुफ्तासिर लगता है
राहों मे ही, कई सोचों की मौत हुई
बसोच हालातों का भी दम घुटा है
गिरे पड़े थे सब कहीं बीच मे
जुबां(नुख्ता) का घर कहीं आस पास पड़ता है
दावा का तर्जुमा कुछ ऐसा है कि
चमकीला कफ़न उडाकर इनको
इस जलती दुनिया मे धकेलें
जोश को होश मे बुन , कोई ऐसा पुल बनायें
दिल ज़हन ,जुबां की दूरियां मिट जाएँ
सोच हल जोते ,और हालात फसल बन लहराएं ।
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