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Friday, February 22, 2008

सर्दी . .टाटा बाय बाय

कश्मीर का मौसम , भटका हुआ राही ।
दरवाज़े खटकाके सब शेहेरों से पूछ रहा है रासता ।
सबके लिए नये किरदार अपनी पोटली मे भर के लाया है ।
कोई दुबक कर ,शोल ओडे , हाथ तापता ।
कोई नन्ही कलि छुईमुई जैसे , ख़ुद मे लिपटा हुआ ।
कोई कछुऐ जैसे , घर मे कम्बल तले।
कोई चाय के चुस्कियों के सहारे ,
चाय का ग्लास दोनों हथेलियों से टिकाए ।
कोई डगमगाता डमरू , मदीरा के नशे की गरमी मे ।
कोई मुह की भाप से खेलकर , बचपन के पन्ने पलटता ।
कोई माँ कि गोद के आँगन मे खेलता हुआ ।
कोई बुना स्वेटर पहने , बताते हुए कि ,
दादी ,चची , माँ , मौसी , पड़ोसी , सब के हाथों कि गर्मी है इसमे ।
सर्दी कि इस तस्वीर को धुन्दला मत होने दो ,
ऐ भाई सुनो , अपना कान करीब लाओ ....
"सुना है ग्लोबल वार्मिंग भी रासता भटक चुकी है "।

Monday, February 4, 2008

मंडी ॥

सब्जी का बाज़ार ।
किसम किसम कि सब्जियां सजी हुईं ।
आगे आगे उम्दा आला ,
पीछे पीछे कुछ पुरानी ,बची हुई ।
बाज़ार भोलता है , " फ्रेश है " ।
"बस अभी तोड़ कर लाये थे " ।
"कुछ देर पहले जान थी इसमे " ।
कुछ बोल लगता है ग्राहक ।
कुछ कीमत रखता है मालिक ।
न तेरी , न मेरी करके ,
मामला सेटल हो जाता है ।
सब्जी घर जाने को तैयार हो जाती है ।
इस बाज़ार में ,
रौशनी भी है ,अँधेरा भी ।
ईमानदारी भी है , धोखा भी ।
मज़ा भी है , चिडचिडापन भी ।
कुछ शोर भी है , और कोई चोर भी ।
बड़ी अजब हैं इसकी रस्में ।
कुछ जुदा हैं इसके कानून ।
ये एक अलग दुनिया है ।
ऐसे ही एक बाज़ार को मैं जानता हूँ ।
बस एक फरक है ,
वहां आत्मा बेचकर , जिस्म ख़रीदा जाता है ।