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Monday, February 4, 2008

मंडी ॥

सब्जी का बाज़ार ।
किसम किसम कि सब्जियां सजी हुईं ।
आगे आगे उम्दा आला ,
पीछे पीछे कुछ पुरानी ,बची हुई ।
बाज़ार भोलता है , " फ्रेश है " ।
"बस अभी तोड़ कर लाये थे " ।
"कुछ देर पहले जान थी इसमे " ।
कुछ बोल लगता है ग्राहक ।
कुछ कीमत रखता है मालिक ।
न तेरी , न मेरी करके ,
मामला सेटल हो जाता है ।
सब्जी घर जाने को तैयार हो जाती है ।
इस बाज़ार में ,
रौशनी भी है ,अँधेरा भी ।
ईमानदारी भी है , धोखा भी ।
मज़ा भी है , चिडचिडापन भी ।
कुछ शोर भी है , और कोई चोर भी ।
बड़ी अजब हैं इसकी रस्में ।
कुछ जुदा हैं इसके कानून ।
ये एक अलग दुनिया है ।
ऐसे ही एक बाज़ार को मैं जानता हूँ ।
बस एक फरक है ,
वहां आत्मा बेचकर , जिस्म ख़रीदा जाता है ।

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