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Friday, December 26, 2008

बिस्कुट बाबा .

वादियों सी जमी बरनियों के बीच ।
उगा एक चेहरा सूरज जैसा।
ज्ञानी झुर्रियां जमुना सी बहती।
ऐनक टिकाई नाक के कोने से ।
सुस्त,मद्धम रौशनी
बरनोयों से थक कर निकलती ।
बरनियों मे बंद सेव,
मुरमुरे, दालमोठ , मठरियां
चुडा मीठा वाला , खट्टा वाला ।
काजू वाला , किशमिश वाला ।
कि कब पुडिया मे सवार होना पड़ जाए।
बिस्कुट कि बरनी भी वहीँ खड़ी थी ।
मीठा मीठा क्रीम बिस्कुट ।
बचों का चहेता क्रीम बिस्कुट ।
शर्तों का इनाम , दोस्ती का निशान , क्रीम बिस्कुट ।

बाबा आखें पड़ कर बोले ।
" १ रूपए के ३ बिस्कुट "
नन्ही हथेली हौले हौले ।
जेब के भीतर आन्दोलन करती ।
कुछ सिक्कों का मार्च निकला ।
हिसाब लगाया , आधा रूपया ।
हलकी मुस्कराहट , बरनी खोली ।
दो बिस्कुटों को अखबार पहेना कर ।
हवाले करा नन्हे मालिक के।
उस दिन कितनी खुशी मिली थी ।
तब से नाम मे बिस्कुट लगा था।
बाबा बने थे बिस्कुट बाबा ।

आज जब सालों बाद उधर गया तो ।
नया नवेला मॉल खड़ा है ।
मौसम भी बदला बदला है।
उपर देखा , सोचा या बोला ।
"बिस्कुट बाबा , आधा बिस्कुट उधार रहा !"

1 comment:

Anonymous said...

bohot shandar dan bhai ...... bohot shandar ........

biscut baba ki jai ........

choo gayee kisi kone ko !!!!!!!!!!