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Tuesday, January 15, 2008

पगडंडी : कब बदलोगे ?

राही के पदचिन्हू की छाप , पगडंडी ही जाने ।
पक्की होके सड़क बने जब , किसी की छाप न पहचाने ।

जहाँ वो बोले मुडती जाए , राही राह बनाए रे ।
सड़क बनते ही धीट हो जाए , अपनी चाल चलाये रे ।

गाव गाव पगडंडी जोड़े , पर वो नक्शों से गायब ।
सड़कें जो नक्शों पे छापी थी , वो धरती पे ही थी कब ।

यही कहानी उपर जाती , इन्हें बनाने वालों मे ।
क्या पगडंडी , कोन सड़क है , यही कहानी इंसानों मे । ।

1 comment:

Amaan said...

bahut ghub...........