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Sunday, February 22, 2009

होशिला शराभी!!

पैमाना नही झलका तो
आखरी बची बूंद की
मदहोशी की लालच ने
होश मे रखा मुझको ।

ज़माने ने सोचा
की मई शराबी नहीं
होश मे ज़माने को समझना चाहा तो
ज़माना गुज़र गया
हालातों ने कुछ इस तरह
समझाया मुझको ।
न ज़माना समझ पाया मुझको ।
न मैं ज़माने को समझ पाया ।
आखरी बूंद चख कर ।
ज़िन्दगी का नशा समझ मे आया ।


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